*छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी* *माँ हमेशा झिडकती ,* *चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .* *थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर* *माँ फटकार लगाती* *चुप रहो ! बड़ी हों रही हों .* *जवान हुई जब , थोड़ा भी बोलने पर* *माँ जोर से डपटती* *चुप रहो , दूसरे के घर जाना है .* *ससुराल गई जब , कु़छ भी बोलने पर* *सास ने ताने कसे,* *चुप रहो , ये तुम्हारा मायका नहीं* . *गृहस्थी संभाला जब , पति की किसी बात पर बोलने पर* *उनकी डांट मिली ,* *चुप रहो ! तुम जानती ही क्या हों ?* *नौकरी पर गई , सही बात बोलने पर कहा गया* *चुप रहो ! अगर काम करना है तो* *थोड़ी उम्र ढली जब , अब जब भी बोली तो* *बच्चों ने कहा* *चुप रहो ! तुम्हें इन बातों से क्या लेना* . *बूढ़ी हों गई जब , कुछ भी बोलना चाहा तो* *सबने कहा* *चुप रहो ! तुम्हें आराम की जरूरत है।* *इन चुप्पी की तहों में , आत्मा की गहों में* *बहुत कुछ दबा पड़ा है* *उन्हें खोलना चाहती हूँ , बहुत कुछ बोलना चाहती हूँ* *पर सामने यमराज खड़ा है , कहा उसने* *चुप रहो ! तुम्हारा अंत आ गया है* *और मैं चुपचाप चुप हो गई* *हमेशा के लिए...* *छोटी थी जब, बहुत ज्यादा बोलती थी* *माँ हमेशा झिडकती ,* *चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .* *थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर* *माँ फटकार लगाती* *चुप रहो ! बड़ी हों रही हों .*