मुखर हुई है चुप्पी सारी,आँसू सारे दहक रहे है दबी वेदना द्रोही होती,अपने सारे बहक रहे है। पीड़ाओं की वेदी में अब,सती सती मत होने जाना सीता तुम भयभीत न होना,नहीं काँपना मत चिल्लाना। दानवदल जब चीर उतारे,आह नही हुंकार लगाना बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना। मानूँगा बलवान भीम है,अर्जुन का भी शौर्य बड़ा है किन्तु सभी की राहें रोकें,धर्मराज का धर्म खड़ा है। होगा जब अन्याय,अधर्मी मुँह फेरे सब बैठे होंगे मर्यादा का ढोंग रचाकर,स्वयं पितामह ऐंठे होंगे। दुःशासन जब केश को खींचे,अबला तुम अगिनी बन जाना बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना। द्यूत सभा ने देवी तुमको,महज़ वस्तु भर मान लिया है तुम पर दांव रचेंगे पांडव,तथ्य शकुनि ने जान लिया है। भरी सभा में नग्न रहो तुम,दुर्योधन का स्वप्न यही है धृतराष्ट्री अंधेपन ने इस,चीर हरण को कहा सही है। जंघा जब ठोके दुर्योधन,स्वयं गदा ले रक्त बहाना बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना। -वीर सिंह सिकरवार मुखर हुई है चुप्पी सारी,आँसू सारे दहक रहे है दबी वेदना द्रोही होती,अपने सारे बहक रहे है। पीड़ाओं की वेदी में अब,सती सती मत होने जाना सीता तुम भयभीत न होना,नहीं काँपना मत चिल्लाना। दानवदल जब चीर उतारे,आह नही हुंकार लगाना बंशीधर की आस छोड़कर,पांचाली गांडीव उठाना। मानूँगा बलवान भीम है,अर्जुन का भी शौर्य बड़ा है