अर्द्धांगिनी अपना संपूर्ण देकर भी जो "कुछ भी न कहलाई उसके समर्पण, प्रेम को ..... कभी विवशता, कभी करुणा , कभी उलाहना की उपमा दे दी गई अर्ध, अंग की जगह पूर्ण मन समर्पित कर लेते तो अर्धांगिनी की जगह वह कहलाती,सम्मानित जीवन जीती मन स्वामिनी मनस्वीनी अर्धांगिनी