ये कौन आ गया भला हमारी दरसगाह में।। हर बसर फिदा है जिस पे एक ही निगाह में।। ऐसा लगा जब ज़ुल्फ़ से पोशीदा हुस्न हो गया। जैसे कमर छुपा हुआ हो गैशु ए स्याह में।। जैसे हिजाब हट गया वो ए गोहर ए नायाब से। दस्त कितने उठ गए खुदा की बारगाह में।। एक पल को मुझे ये लगा मैंने उसको पा लिया। कुछ पल के बाद मेने खुद को पाया ख्वाबगाह में।। उसने कहा की इतना इश्क़ करते हो क्या ज़ुल्फ़िक़ार। मैंने कहा की चाहता हुँ तुम को बे पनाह में।। poeted by - हसनैन ज़ुल्फ़िक़ार #feather_love