शीर्षक-अनुनय भयी अचिरिजु बङी मीत, हारी गयी हम और तुम गए जीत बेगिही देऊँ अपने उर-कर से आशीष हम दुहुँ एक दुजे को भूरि-भाँय, ब्योम-बीथिका में हम बैठे अब किस खोरि जायँ प्रातही बीती,साँझ भी बीती किन्तु हम-तुम लखि लगाये फिरौं क्यों अनुराग पयोधि न भर पाये वारि बिन मीना जैसे,वैसे ही हो गयी हम तुम बिन सुनऊँ पुकार हमारी ओ!दानिन के शील हम निरधार ना जानहे आवनि पौरि तुम्हारे गैल करयीं परसन हित को तुमको किन्तु रावरी छवि न दिखे हमें ईश वारौं तन भी-वारौं मन भी, क्यों विकल करत हो हमको मीत यथारत में दर्शन न देय सकत जौ आपनो, तौं हमें देइ दौं मीचु आप हमारी साँसुरी और हम आपकी तुच्छ-सी रज है जगदीश।। -एकता मिश्रा ©Miss mishra #HappyKrishnaJanamastmi to all,I wrote this poem in 2013.