कइ बार साेचा मैनें कि हाे जाउं मैं भी बुद्ध करूं सत्य का अन्वेषण करूं मन के अज्ञान का भेदन पर कभी शरीर के भगवान ने राेका ताे कभी संस्कार के ईश्वर ने टाेका और जाे कभी आमादा हुयी हर बंधन ताेड़ने काे ताे काेख के रूदन ने फिर संसार में झाेका और हर बार विवश हाे मैं बनती रही,सिर्फ और सिर्फ यशाेधरा.... क्यूं कभी काेई स्त्री कबीर या बुद्ध ना बन पायी कभी जाे किया प्रयास उसने, ताे बना कर उसे मीरा ,इस जहां ने जहर की प्याली हीं थमायी..... माफी चाहूंगी 🙏मेरा ईरादा किसी की भावना काे चाेट पंहुचाना नहीं है।बस,एक सवाल है मेरा ,एक स्त्री मध्यरात्री में पति और दुधमुहें बच्चे काे छाेड़ धर्म की मार्ग पर चल पड़े,ताे क्या ये समाज उसे साध्वी कहेगा या कुलटा... समानता कहां है दाेस्ताे Sanses Foundationशुक्रिया याद दिलाने काे की लिखना भी है🙏🙏 सुप्रभात।