कौन दोहराये दर्द की कहानी फिर से; आओ कि लौट जाएँ सुकून में फिर से। उधड़े हुए रिश्तों की रफ़ूगरी के लिए; कुरेदने होंगे कई ज़ख्म पुराने फिर से। फिर अपनों दरमियाँ मुस्कुराये ज़िन्दगी; समेटने होंगे खुशियों के बहाने फिर से। यकीन आहत है बहुत, चोट गहरी है सही; भूलकर तल्खियाँ होंगे कदम बढ़ाने फिर से। मिलें ऐसे कभी कि घर लगे घर कि तरह; मैं चाहता हूँ लौट आयें वो ज़माने फिर से। #अभिशप्त_वरदान #रिश्तों_की_रफ़ूगरी