मन के कितने दरवाजे हैं,एक दरवाजा खोलो तो हम भी समझें बोल तुम्हारे, ऐसी भाषा बोलो तो घर आंगन अंबर सब साझा, ऐसी बातें कहते हो कोई घर में आग लगाए, बुझाने में संग हो लो तो हम भी हम भी कर कर अधिकार जताया करते हो संसाधन पूरे लेने को हरदम रार मचाया करते हो देश की बात पड़े जब, क्यों दुश्मन से मिल जाते हो अपने देश को हारते देख कैसे खुशियां मनाते हो? तुमसे एकतरफ प्यार नहीं हो सकता बात जान लो कुछ कसमें तुम भी खाओ,अपना कर्तव्य मान लो अपनी संस्कृति,अपनों के साथ सुरक्षित रखना होगा मातृभूमि को अपनी माता की तरह ही पूज्य मान लो। (पूरी कविता कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें) मन के कितने दरवाजे हैं,एक दरवाजा खोलो तो हम भी समझें बोल तुम्हारे, ऐसी भाषा बोलो तो घर आंगन अंबर सब साझा, ऐसी बातें कहते हो कोई घर में आग लगाए, बुझाने में संग हो लो तो हम भी हम भी कर कर अधिकार जताया करते हो संसाधन पूरे लेने को हरदम रार मचाया करते हो