जबसे आंखों को खोला है तबसे तुझको ही पाया है दादी ने कहानी में, मां ने हर लोरी में तुझको गाया है जब कंधे पर बाबा के बैठ मैं पूरा मेला घुमा करता था तब भी तुझे अपने चारो ओर सुनता और समझता था पापा की बातो में तुम थी, दोस्तों के मस्ती में तुम थी हर एक गली हर कूचे हर घर हर बस्ती में ही तुम थी तुमको बोला है बचपन से तुमने जवानी तक साथ दिया जब जब कुछ ना मैं समझा था तूने ही मेरा साथ दिया फिर बोलो कैसे आज के दौर में साथ तुम्हारा छोड़ दू मैं इस अंग्रेजी के चक्कर में कैसे हाथ तुम्हारा छोड़ दू मैं रग रग में मेरे बसी हुई हो तुमको छोड़ नही सकता हूं हिंदी को नजरंदाज कर मै अंग्रेजी बोल नही सकता हूं अंकुर तिवारी 'अंजान' . . ©Ankur tiwari जबसे आंखों को खोला है तबसे तुझको ही पाया है दादी की कहानी में, मां की लोरी में तुझको पाया है जब कंधे पर बाबा के बैठ मैं पूरा मेला घुमा करता था तब भी तुझे अपने चारो ओर सुनता और समझता था पापा की बातो में तुम थी, दोस्तों के मस्ती में तुम थी हर एक गली हर कूचे हर घर हर बस्ती में ही तुम थी तुमको बोला है बचपन से तुमने जवानी तक साथ दिया जब जब कुछ ना मैं समझा था तूने ही मेरा साथ दिया