अपनों में भी तो कुछ थी दगा बाजियाँ माँ के सीने पे भी तो चली आरियां देशभक्तों की फिर भी चली टोलियाँ इसकी खातिर चुनी घास की रोटियां ये तिरंगा नहीं ये तो अभिमान है आन है ये यही तो मेरी जान है। ©कवि मनोज कुमार मंजू #अपने #दगा #माँ #देशभक्त #मनोज_कुमार_मंजू #मँजू #BehtaLamha