मत जा शहर गाँव छोड़कर जब जा रहा था शहर मैने बहुत तुमको समझाया था मगर तुझपे हुआ न इसका जरा भी असर वहाँ रहते है सभी मतलबियों का घर गाँव छोड़कर तू मत जा शहर। शर्म,दहशत, झिझक और परेशानी अपना कुछ भी नही वहाँ खानदानी वायु,जल,कदन्न और कार्य संविदा निर्भरन्त, सुख-चैन से जीवन जुदा उठती जब-जब वहाँ समुद्री लहर गिरते है वहाँ सभी ऊँचे-ऊँचे घर नित उठते, सबका जीवन निशाचर गाँव छोड़कर तू मत जा शहर। तापत्रय जीवन और सम्पति अमर हिम्मत जुटा और खेती-वाड़ी कर उगती धान गेहूँ, मक्का ,भूमि उर्वर शहरी हवा में घुलती रोज नयी जहर गाँव की मिट्टी में है दवाओं का असर नदी,पहाड़,झरना,और दृश्य मनोहर भाई-बहन,माता-पिता रहते मिलजुल कर गाँव छोड़कर तू मत जा शहर। रवि शंकर सहायक लोको पायलट मुम्बई 7654068870 ईमेल-ravis7080@gmail.com. #nojotohindipoem#hindipoem_hindikavita#mat ja shahar kavita_हिंदी कविता#