कभी ये सुनसान रातें या अनचाही यादों की बारातें, अतीत के पन्ने पलटे करवटें मेरी, मै रोती रही चेहरा छुपाते। उस रात जब लौटते हुए मेरा हाथ किसी ने पकड़ा था, मै थी अकेली, मुझे डर ने तब चारों तरफ़ से जकड़ा था। मै भागती, डरती घर आ गई, घर पर मालूम चला, सुनसान रातें उन सुनसान राहों की ताकत है यही बला। 🎀 Challenge-220 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 6 पंक्तियों में अपनी कविता लिखिए। (ध्यान रहे कविता लिखनी है)