मुख़्तसर सी मुलाकात
खोया बैठा था मैं ख्वाबों ख्यालों में,
मुख़्तसर-सी भी मुलाकात न कर पाने की मलालों में,
जाने कैसा डर था, कैसी झिझक थी,
ज़ाम-ए-लफ्ज़ नहीं डाले जो बीते वक्त के प्यालों में।
उठाई कलम की लिखुँ कुछ खोकर उसके गली-ए-ज़मालों में,
पर तुरंत ही घिर आया मैं अय्यार कलाम के सवालों में।
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