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जाने क्यों कविता बन जाती, दिल के सूने तार हिलाती।

जाने क्यों कविता बन जाती, दिल के सूने तार हिलाती।
चाह जीवन के मैं गीत सुनाऊँ, पर यह वियोगी मुझे बनाती।।

©Shubham Bhardwaj
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