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कितने सारे रंग फीके पड़ जाते हैं तुम्हारे रंग के आ

कितने सारे रंग फीके पड़ जाते हैं तुम्हारे रंग के आगे
नदियाँ बलखाने लगती हैं तुमको देखकर, 
फूल महकते हैं हवा में घुली खुशबू पाकर तुम्हारी, 
जुगनू जलते हैं रातों में आँखों को देखकर तुम्हारी। 
फसलें लहराती हैं देखकर बलखाती हुयी कमर तुम्हारी, 
जलने लगते हैं चराग़ जब पड़ती हैं उनपर नज़र तुम्हारी। 

मुझे लगता हैं कुदरत की लिखी हुयी कोई नज़्म हो तुम। 

ये तुम्हारे होठ, पत्तियाँ हैं किसी गुलाब की, 
मानती क्यूँ नहीं हो तुम?
और ये आंखें जो हैं तुम्हारी ये चराग़ हैं जलते हुए, 
जिनसे हैं रोशन मेरे दिल का हर कमरा जिसमें, 
मैंने सजा रखी हैं तस्वीर तुम्हारी।

©Mahesh Kumar Bose #Maheshkumarbose #poetry
#lovepoetry #Beautiful #eyes #Love
कितने सारे रंग फीके पड़ जाते हैं तुम्हारे रंग के आगे
नदियाँ बलखाने लगती हैं तुमको देखकर, 
फूल महकते हैं हवा में घुली खुशबू पाकर तुम्हारी, 
जुगनू जलते हैं रातों में आँखों को देखकर तुम्हारी। 
फसलें लहराती हैं देखकर बलखाती हुयी कमर तुम्हारी, 
जलने लगते हैं चराग़ जब पड़ती हैं उनपर नज़र तुम्हारी। 

मुझे लगता हैं कुदरत की लिखी हुयी कोई नज़्म हो तुम। 

ये तुम्हारे होठ, पत्तियाँ हैं किसी गुलाब की, 
मानती क्यूँ नहीं हो तुम?
और ये आंखें जो हैं तुम्हारी ये चराग़ हैं जलते हुए, 
जिनसे हैं रोशन मेरे दिल का हर कमरा जिसमें, 
मैंने सजा रखी हैं तस्वीर तुम्हारी।

©Mahesh Kumar Bose #Maheshkumarbose #poetry
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