जीवन एक अत्यंत दुष्कर मार्ग जहाँ कठनाइयों के उबार खाबड़ गढ्ढे और उन गड्ढों पर अन्धकार रूपी पानी जो नित्य फैलता जा रहा अनंत दुरी तक जिसमे साँप और बिछुओं ने जमा लिया है डेरा वो प्रकाश जो कल तक मार्ग दिखाया करता था वह निरंतर सिमटता जा रहा एक दायरे में वो दायरा जो शुक्ष्म होता जा रहा है नित्य निरंतर के जैसे उसे भी जल्दी हो बुझ जाने की जैसे इस क्षण में मेरा अंतर्मन जो विचार शून्यता के उस स्तर पर प्रवेश कर चुका है जहाँ ना तो आगे जाने की बेसब्री है और ना ही संघर्ष करने का हौशला उस बुझते हुए प्रकाश पुँज की तरह ये जीवन ये दुर्गम मार्ग और अन्धकार भरे पानी इन सबके बीच अपने अंतर्मन को खंगालता अपने आप को टटोलता निराशा से भरा नितांत एकाकी मैं और मेरा संघर्ष विराम।। - क्रांति #जीवन