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अपनो के दरमियां सियासत फिजूल है मकसद ना हो कोई तो

अपनो के दरमियां सियासत फिजूल है 
मकसद ना हो कोई तो बगावत फिजूल है 
रोजा नमाज़ सदका ऐ खैरात या हो हज
माँ बाप खुश ना हो तो सारी इबादत फिजूल है माँ बाप खुश ना हो तो सारी इबादत फिजूल है
अपनो के दरमियां सियासत फिजूल है 
मकसद ना हो कोई तो बगावत फिजूल है 
रोजा नमाज़ सदका ऐ खैरात या हो हज
माँ बाप खुश ना हो तो सारी इबादत फिजूल है माँ बाप खुश ना हो तो सारी इबादत फिजूल है