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कहते है! जब कान्हा की बासुँरी बजती थी, तो ब्रज वा

कहते है!
जब कान्हा की बासुँरी बजती थी, 
तो ब्रज वासी दिवाने हो जाते थे,
अपना दु:ख, कष्ट भूलकर खुशी में झूम उठते थे...

हे माधव!
कलयुग में भी अपनी मीठी प्रेम धुन छेड़ दो, 
जिससे समस्त भारत वासी एक बार फिर प्रेम के बंधन में बंध जाए,
आपसी द्वेष, अहंकार, उँच-नीच को भूलकर, 
एक-दूसरे के सुख-दु:ख के साथी बन जाए...

राधे राधे!  Hello Resties! ❤️ 

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कहते है!
जब कान्हा की बासुँरी बजती थी, 
तो ब्रज वासी दिवाने हो जाते थे,
अपना दु:ख, कष्ट भूलकर खुशी में झूम उठते थे...

हे माधव!
कलयुग में भी अपनी मीठी प्रेम धुन छेड़ दो, 
जिससे समस्त भारत वासी एक बार फिर प्रेम के बंधन में बंध जाए,
आपसी द्वेष, अहंकार, उँच-नीच को भूलकर, 
एक-दूसरे के सुख-दु:ख के साथी बन जाए...

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