आओ आवाह्न करें भीतर के शिव का जो अदृश्य है पर व्याप्त हैं प्रकृति के कण-कण में। रूप धर कभी क्रोध का तो कभी भोले रूप में प्रिय है वो योग है विज्ञान है इस धरा के पालनहार है वो कोई कल्पना नहीं आदि और अन्त है। तम का वो रूप है व्याप्त है मानवहदय में और हम व्यस्त है प्रकाश की खोज में। वो रोग है निरोग है वो पुरूषार्थ है जिसमें पुनरावृत्ति है उस शिव को बारंबार प्रणाम है। ©Lalita pandey #lalitapandey75 #mahashivratri