एक शहीद की आखरी खत जब तेरे सपनों में माँ मैं, कभी हंसता तो कभी रो रहा था। तब यह आखरी खत लिखकर माँ, तेरा यह लाल सो रहा था। आज भी याद है वह दिन मुझे, जब मैं गिरता तो रोते देखता था तुझे। पर माँ पढ़कर यह खत रोना नहीं तुम, खोकर मुझे अपना सुध बुध खोना नहीं तुम। जब कहीं बाहर मैं जाता था, तब बहुत याद तुम्हें मैं आता था। इस बार मैं सदा के लिए जा रहा हूं, अनचाहे मन से तुम्हें माँ रुला रहा हूं। जो लोरी तू मुझे रोज रात सुनाती थी, पास बैठकर मेरे प्यारी धुन में गाती थी। वही लोरी सुनने को मेरा शव बेताब होगा, चिताग्नी से पहले उसे तेरा इंतजार होगा। #शहीद