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कल रात तुम दिखीं नहीं नाराज़ हो क्या ? कल कमरे में

कल रात तुम दिखीं नहीं
नाराज़ हो क्या ?
कल कमरे में सिर्फ़ ख़ामोशी थी औऱ उसको तोड़ती 
वो घड़ी का शोर 
हाँ पता हैं तुम्हें मेरा यू बहकना पसंद नहीं हैं 
लेकिन क्या करूं
तुम्हें बता कर ही तो शुरू किया था 
कभी कबार पी लेता हूँ 
नशा होता नहीं हैं लेकिन तुम बहुत याद आने लगती हो 
अभी दूसरी दफा 
पीना सुरु ही किया था 
अचानक रोने का शोर चारों तरफ़ गुंजने लगा 
में पागलों की तरह तुम्हें ढूंढने लगा 
औऱ अचानक मेरा पैर कहीं जा लगा 
में वही फर्स पे जा गिरा 
अभी होश आया तो तुम्हारे गोद में अपना सर रखें 
रोए जारा था 
पता नहीं आजकल तुम मुझमे बहुत हावी होती जारी हों 
सुनो .....
मुझे कभी-कभी अब तुमसे डर भीं लगने लगा हैं 
ऐसा नहीं चाहता था में 
हम पहले की तरह ख़्वाबों में मिला करेंगे.
मेरे दोस्त मुझे अब पागलों जैसी हरकतें करते हुए देखते हैं 
क्या तुम यहीं चाहती थीं?
नहीं ना.....
फिर 
हा में अब कोशिश में लगा हूं 
सुधरने में 
पता हैं तुम कहती थी,मुझसे भीं खूब तुम्हें मिल जाएगी 
लेकिन तुम्हें भीं मालूम हैं.
मे क्या कहा करता था?
.......................
-सिर्फ़ तुम्हारा( दगडू )

©बदनाम
  सिर्फ तुम्हारा....

सिर्फ तुम्हारा.... #Life

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