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रिश्ते गर होते लिबास,होते बहुत अधिक प्रवास..! कौन

रिश्ते गर होते लिबास,होते बहुत अधिक प्रवास..!
कौन समझता किसी को,कौन रहता किस के पास..!

कटती रहती ज़िन्दगी यूँ ही,बचती न तनिक भी आस..!
हृदय दुखाते लोभ लुभाते,कहाँ होता किसका कैसे निवास..!

तन्हा तन्हा लम्हा लम्हा,नज़दीकियों की अहमियत रहती काश..!
घटते दुःख बढ़ती ख़ुशियाँ,मुस्कराहट का होता कहाँ विकास..!

उल्फ़त-ए-ग़म न होते कम,अच्छे माहौल का न होता वास..!
रिश्तों की रिश्वत वक़्त है वास्तव,बदलता कहाँ फिर ईमान का इतिहास..!

ज़िन्दगी ज़हन्नुम होती हरपल दल बदल सा होता रास..!
बदलती दुनिया समय समय पर हर दिन हरदम बारह मास..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #fog #libaas