प्रेम प्रेम एक रसायन है क्योंकि यह यंत्र नहीं विलयन है, द्रष्टा और दृष्टि का। सौन्दर्य के दृश्य तभी द्रष्टा की दृष्टि में विलयित हो पाते हैं, और यही अवस्था प्रेम की अवस्था होती है। प्रेम और सौन्दर्य दोनो की उत्पत्ति और उद्दीपन की प्रक्रिया अन्तर से प्रारम्भ होती है। सौन्दर्य मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है, और प्रेम उस सौन्दर्य में समाया रहता है। प्रेम में आसक्ति होती है। यदि आसक्ति न हो तो प्रेम प्रेम न रहकर केवल भक्ति हो जाती है। प्रेम मोह और भक्ति के बीच की अवस्था है। ©shudhanshu sharma प्रेम कि परिभाषा अपने शब्दों में प्रेम - प्यार (love) द्रष्टा - देखने वाला विलयित - विलय होना (dissolved ) उद्दीपन - प्रज्ज्वलित (catalysis) आसक्ति -मोह ( attachments )