ग़ज़ल आंखें हैरान ओ परेशान कई रोज़ से हैं हम पे एक ख़्वाब के एहसान कई रोज़ से हैं दीदनी है नए मेहमानों के आने की ख़ुशी कुछ नए ग़म मेरे मेहमान कई रोज़ से हैं गुल खिलाएंगे ख़िरद वाले न जाने क्या क्या ख़ैर हो ! चाक गिरेबान कई रोज़ से हैं हिजर् के ख़ौफ़ से सहमे हुए हम भी हैं बहुत देखिए ! आप भी हलकान कई रोज़ से हैं हम तो ख़ुद पे भी कभी सहल न गुज़रे जावेद किसकी सोहबत है के आसान कई रोज़ से हैं जावेद अकरम #ghazal #Javed akram #walkingalone