बंजर सी जमीन है उस गरीब की जहा वो अकेला है इस भीड़ में भी वो जुदा सा है बात महामारी को हो या बीमारी को अध्याय तो उसका ऐसे ही समाप्त हुआ है इनकी ज़िन्दगी गरीबी से शुरू होकर इसी पर ख़तम हो जाती है ये चाहे कुछ भी करे समाज के सामने औकात दिखा दी जाती हैं इनकी ज़िन्दगी भी खुदा ने ना जाने किस कलम से लिखी जिसमे दुख के सिवा कुछ बाकी बचा कहा है आखिर सिर्फ एक दिन की रोटी के लिए ये इतना तपते है की सूरज भी झुक जाए मुस्कान आती चहरे पर जब इनको वो रोटी मिल जाती है वरना ज़िन्दगी तो इनकी यूहीं ख़तम हो जाती है .......... #solace # गरीबी गरीब को