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एक शाम तुझसे जो गुफ्तगु हो हर्फ़-ए-तमन्ना के जुस्

एक शाम तुझसे जो गुफ्तगु हो 
हर्फ़-ए-तमन्ना के जुस्तजू हो 

एक ख्याल तराशूँ कागजो पे
वो जो तेरे चहरे के हुबहू हो

जो दिन रात रहता है मुझमें 
कभी तो वो मैरे रूबरू हो 

एक खत हो खाली मैरे नाम 
जिसमें तेरे बदन की खुशबू हो 

जब हो ना काहानी मे लैला कोई
फिर किस तरह से कोई मजनू हो

©Rajat Bhardwaj
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