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#OpenPoetry वो उम्मीदोँ के वियावान से जंगल में भटक

#OpenPoetry वो उम्मीदोँ के वियावान से जंगल में भटकते हुए
मायुश होती ख़्वाहिशों के पीछे कहीँ चलते हुए
वो ख़्वाबों की कश्मकश में वो उलझनों से भरी रातोँ में
कभी तुम्हारी नादानी में तो कभी बेबाकी से भरी बातों में
ढूँढता रहा हूँ तुम्हारे निशान-ए-अक्स को हमदम
सुने परे अपने एहसासों में तो कभी शोर करते हुए ज़ज़्बातों में
एक उम्र के जिसमे गुज़ारी सदियोँ सी है हमने
खुदके भीतर भी बस तुमको तलाश करते हुए
वो उम्मीदोँ के वियावान से जंगल में भटकते हुए
मायुश होती ख़्वाहिशों के पीछे कहीँ चलते हुए।।

- क्रांति #उम्मीदें
#OpenPoetry वो उम्मीदोँ के वियावान से जंगल में भटकते हुए
मायुश होती ख़्वाहिशों के पीछे कहीँ चलते हुए
वो ख़्वाबों की कश्मकश में वो उलझनों से भरी रातोँ में
कभी तुम्हारी नादानी में तो कभी बेबाकी से भरी बातों में
ढूँढता रहा हूँ तुम्हारे निशान-ए-अक्स को हमदम
सुने परे अपने एहसासों में तो कभी शोर करते हुए ज़ज़्बातों में
एक उम्र के जिसमे गुज़ारी सदियोँ सी है हमने
खुदके भीतर भी बस तुमको तलाश करते हुए
वो उम्मीदोँ के वियावान से जंगल में भटकते हुए
मायुश होती ख़्वाहिशों के पीछे कहीँ चलते हुए।।

- क्रांति #उम्मीदें