नाव और नदी (कविता) ज़िंदगी की उफनती हुई नदी में सब अपनी नाव खे रहे हैं जूझ रहे हैं तूफ़ानों से, किनारे तक का रस्ता ढूंढ रहे हैं हताशा को छोड़ हौसलों को अपने परवान दे रहे हैं इन आते जाते चक्रवातों से वो बेख़ौफ़ लड़ रहे हैं ऊँची नीची लहरें ले जाना चाहती हैं उन्हें साहिल से दूर मंज़िल का कुछ अता पता नहीं, वो है अभी सुदूर नाव एक दिन ज़रूर लगेगी उनकी किनारे पर उनकी हिम्मत ही है अब उनमें उनका गुरूर #collabwithकोराकाग़ज़ #kkpc28 #विशेषप्रतियोगिता #kkप्रीमियम #कोराकाग़ज़ Pic credit google