पल्लव की डायरी मन घायल होकर,तन मन झिझोर देता है फूटकर ज्वार भाटा,जब उद्देलित कर देता है कल्पनाओं में शब्दों के बादल उड़ेल देता है तब भावुक मन रचनायें रच देता है कलम कागज ले कर बैठो अंतर्द्वंद बढ़ जाता है होता प्रसव पीड़ा जैसा दर्द सृजन नई कविता का हो जाता है दर्द कवि को उस समय होता जब लोग कविता को हल्के में ले जाता है लाईक कमेंड देने में कंजूसी कर जाता है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" ##dayari होता प्रसव पीड़ा जैसा दर्द,लोग हल्के में जाता है #dayari