आते हैं बहुत याद , क़ाग़ज़ ये पुराने । सताते हैं हमे आज, वो क़ाग़ज़ के बहाने। ये क़ाग़ज़ थे हमे कभी, जान से प्यारे, सो जाते थे फुरक़त मे, इन्हें रख के सिरहाने। हमने तेरे ख़तों को , यूँ रक्खा है सम्हाल के, रखता है जैसे सम्हाल के, कोई ख़ज़ाने। वो भी क्या ज़माना था, याद करो,"फिराक़", माशूक़ से ज़्यादा मुश्किल थे, क़ासिद के बहाने।— % & OPEN FOR COLLAB✨ #ATblankbg230 • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ✨ 🏆CHECK OUT OUR PINNED POST FOR A SPECIAL POST! ❄️ Collab with your soulful words.✨ • Must use hashtag: #aestheticthoughts