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कुछ टूटा है अंदर, कुछ टूट रहा है। बस इसे ही जोड़ने

कुछ टूटा है अंदर, कुछ टूट रहा है।
बस इसे ही जोड़ने की मांग करता हूँ।
मैं आदमी हूँ इस दौर का ,
समय होते हुए भी समय की मांग करता हूँ।
कबसे इन बंद दीवारों में हूँ,
अब उजाले की मांग करता हूँ।
यूं तो आकार बड़ा है मेरा,
गर अब !

कुछ टूटा है अंदर, कुछ टूट रहा है। बस इसे ही जोड़ने की मांग करता हूँ। मैं आदमी हूँ इस दौर का , समय होते हुए भी समय की मांग करता हूँ। कबसे इन बंद दीवारों में हूँ, अब उजाले की मांग करता हूँ। यूं तो आकार बड़ा है मेरा, गर अब !

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