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'क्षणिका' खोलना गाँठें मन की सम्मुख किसी के आसान

'क्षणिका'

खोलना गाँठें मन की
सम्मुख किसी के
आसान नहीं है
किंतु जो कर दे ऐसा कुछ
मान तुम्हें साथी मन का
उससे बढ़कर तुम्हारे लिए
कोई सम्मान नहीं है
थामना हृदय उसका
देना भावों का संबल
रख अपने तक सुख-दुःख उसका
बनना विश्वास की मूरत
इससे बेहतर कोई सूरत नहीं है

©Neha M sharma 'Nirjhara'
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