धर्म योगी,कर्म योगी, राज योगी आप हैं। नयनों में हैं अश्रु करुण, मस्तक पर ताप है। भगवा तन भगवा मन,भगवा तिलक छाप है। आदि योगी शंकर गौरक्ष का प्रताप है। हिन्द सूर्य उदित हुआ,पाप को संताप है। देश हो अखंड ये,नव भोर का आलाप है। ©deepesh singh #HappyBirthdayYogiJi