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खुशियों से भरा मन अचानक, खुशियों से भरा मन अचानक

खुशियों से भरा मन अचानक,  खुशियों से भरा मन अचानक और प्रफुल्लित हो उठता है।
जब याद बचपन की आती है,जब मास्टर डाँटा करते थें।
जब गर्मी की छुट्टियां आतीं थीं,हम आम तोड़ा करते थें।
जब इतवार को दूरदर्शन के आगे ,परिवार सहित बैठ जाते थें।

नहीं कानाफूसी चुगलखोरी,सिर्फ़ और सिर्फ़ सच्चाई थी।
 जो रूठ गए दोस्त तो दो मिनट में कट्टी से मेल मिलाई थी।
बड़ी सस्ती खुशियां थीं और, पार्टी में पसंदीदा मिठाई थी।
अब के बच्चे क्या जाने कैसी बचपन हमने बिताई थी।

खुशियों से भरा मन अचानक मायूस सा हो जाता है।
         जब माँ की लोरी की बजाए ,उन्हें मोबाइल         दिखाया जाता है।
           जब खेलने वाली उम्र में बच्चों को, प्लेस्कूल में           डाला जाता  है।      
             जब उनके संग बात न कर ,आफिस सा माहौल          बनाया जाता है।
       जब एक बच्चे की नीति अपना कर,भाई बहन से दूर         किया जाता है। खुशियों से भरा मन अचानक और प्रफुल्लित हो उठता है।
जब याद बचपन की आती है,जब मास्टर डाँटा करते थें।
जब गर्मी की छुट्टियां आतीं थीं,हम आम तोड़ा करते थें।
जब इतवार को दूरदर्शन के आगे ,परिवार सहित बैठ जाते थें।

नहीं कानाफूसी चुगलखोरी,सिर्फ़ और सिर्फ़ सच्चाई थी।
 जो रूठ गए दोस्त तो दो मिनट में कट्टी से मेल मिलाई थी।
बड़ी सस्ती खुशियां थीं और, पार्टी में पसंदीदा मिठाई थी।
खुशियों से भरा मन अचानक,  खुशियों से भरा मन अचानक और प्रफुल्लित हो उठता है।
जब याद बचपन की आती है,जब मास्टर डाँटा करते थें।
जब गर्मी की छुट्टियां आतीं थीं,हम आम तोड़ा करते थें।
जब इतवार को दूरदर्शन के आगे ,परिवार सहित बैठ जाते थें।

नहीं कानाफूसी चुगलखोरी,सिर्फ़ और सिर्फ़ सच्चाई थी।
 जो रूठ गए दोस्त तो दो मिनट में कट्टी से मेल मिलाई थी।
बड़ी सस्ती खुशियां थीं और, पार्टी में पसंदीदा मिठाई थी।
अब के बच्चे क्या जाने कैसी बचपन हमने बिताई थी।

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         जब माँ की लोरी की बजाए ,उन्हें मोबाइल         दिखाया जाता है।
           जब खेलने वाली उम्र में बच्चों को, प्लेस्कूल में           डाला जाता  है।      
             जब उनके संग बात न कर ,आफिस सा माहौल          बनाया जाता है।
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