खुशियों से भरा मन अचानक और प्रफुल्लित हो उठता है।
जब याद बचपन की आती है,जब मास्टर डाँटा करते थें।
जब गर्मी की छुट्टियां आतीं थीं,हम आम तोड़ा करते थें।
जब इतवार को दूरदर्शन के आगे ,परिवार सहित बैठ जाते थें।
नहीं कानाफूसी चुगलखोरी,सिर्फ़ और सिर्फ़ सच्चाई थी।
जो रूठ गए दोस्त तो दो मिनट में कट्टी से मेल मिलाई थी।
बड़ी सस्ती खुशियां थीं और, पार्टी में पसंदीदा मिठाई थी। #कविता#khusiyaan