मैं दर्द लिखूं ,या मौत लिखूं मैं क्या लिखूं मैं कई टुकड़ों में टूटी हूं उसकी चीख जो हलक में अटकी है वो आवाज़ लिखूं मैं क्या लिखूं ज़िन्दगी लिखूं या ज़िन्दगी से थक कर अंधेरों में भटक रही मैं वो इंसान लिखूं मैं क्या लिखूं उम्मीद लिखूं या भरोसे की मारी हुई वो जज्बात लिखूं जिसे टूट कर चाहा उसी ने तोड़ कर रख दिया मैं क्या लिखूं हंसी लिखूं या आंसू लिखूं जिसे दिखाना भी एक मजबूरी है और छुपाना भी जरूरी है मैं करूं भी तो क्या करूं मैं जी भर के रोना चाहती हूं , मैं चीखना चिल्लाना चाहती हूं पर ये सब मैं कर नहीं सकती अपने अंदर ये सैलाब लिए भी मैं जी नहीं सकती तो आखिर में मैं क्या लिखूं उम्मीद लिखूं ,या आशा लिखूं जो कहीं दूर तक साथ नहीं प्यार लिखूं या नफरत लिखूं जो मैं चाह कर भी इन दोनों में से कर नहीं सकती मैं रात लिखूं या दिन लिखूं जबकि अब तो दोनों बराबर हैं मेरे लिए सुकून लिखूं या बेचैनी लिखूं जिसका अब कोई अंत नहीं है आखिर मैं , मैं क्या लिखूं ,मैं क्या लिखूं। ©rj sujata kushwaha #Light #rjsujata