स्थान था अल्फ्रेड पार्क और जिला था इलाहाबाद, एक तरफ़ अंग्रेज़ थे तो दूजी तरफ़ नरसिंह आज़ाद। अंग्रेज़ों के आग्नेयास्त्र तो लगातार ही चिंघाड़ रहे थे, इधर एक रिवॉल्वर लिए आज़ाद भी दहाड़ रहे थे। पर हाय! शत्रु की सेना से एक वीर कब तक बचता। एक अभिमन्यु ज़ख़्मी था औ' शकुनि था व्युह रचता। प्रण किया था कि शत्रु को न तन का स्पर्श करने दूंगा, अपने इस मर्त्य शरीर को न अंग्रेजों द्वारा मरने दूंगा। अपनी आखिरी गोली को अपने ही गात में उतार लिया, और अपना इहलोक का जीवन देश-सेवा में वार दिया। था ऐसा ख़ौफ़ कि शत्रु पार्थीव में खतरा भाँप रहे थे, माता कि गोद में सोए वीर से सब डरकर काँप रहे थे। फ़रवरी की सत्ताइस थी और सन् इकतीस वर्ष था, अपनी राह का काँटा हटने से अंग्रेज़ों में बड़ा हर्ष था। हे धरतीपुत्र! आप भारतवासियों को सदा ही याद रहेंगे, आप आज़ाद थे,आज़ाद हैं और सदा हीआज़ाद रहेंगे।। #aazaad #chandrashekharaazaad #vks