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Kammo part lll मैं मुसकुराता हुआ चाचाजी के घर की ओ

Kammo part lll मैं मुसकुराता हुआ चाचाजी के घर की ओर चल पड़ा । पूरे रास्ते, कम्मो का चहरा आँखो के आगे आता रहा। अब भी जब वो मेरे साथ नहीं है तब भी वही मेरे चारो ओर है। पता नहीं कैसी हो, कोई कुछ बता भी नहीं रहा। मै अपना चहरा हथेलियों के बीच छिपा कर वहीं कुरसी पर बैठ गया । पल भर में पूरी दुनियां पलट गई थी। 
तभी दरवाजे पर खटका हुआ,  आवाज़ आई, खाना रखा है ले लो। मैंने दरवाजे के बाहर से खाना उठा लिया ।  उस दिन जब घर पहुंचा, तो एक बड़ी उम्र के, गठीले शरीर वाले सज्जन चाचाजी के साथ बैठे थे।   मैं अंदर गया, तो चाचाजी ने पास बुलाया ।
चाचाजी ने मेरा परिचय सरपंच जी से कराया।
चाचाजी: सुक्खी भाई, ये बल्ली प्राजी का बड़ा पुत्तर है, इंदरजीत । वड्डा होनहार है जी। बल्ली वीर जी यहाँ फैक्ट्री लगवा रहें है। मुंडा उसके खातिर गांव में जमीन देख रहा है।
सरपंचः ये तो बड़ा चंगा है जी। कोई ना पुत्तर, कल तैनू जमीन दिखा देंगे और दोपहर की रोटी भी खिला देंगा।
मैं: चंगा जी! सत श्री काल जी।
सरपंच जी चले गए। मैं खाना खाकर अपने कमरे में आ गया। जाने क्यूँ कम्मो का खयाल मन से जा ही नहीं रहा था।
अगले दिन चाचाजी ने नाश्ते के बाद सरपंच जी के घर जाने के लिए गाड़ी  निकालने को कहा।
Kammo part lll मैं मुसकुराता हुआ चाचाजी के घर की ओर चल पड़ा । पूरे रास्ते, कम्मो का चहरा आँखो के आगे आता रहा। अब भी जब वो मेरे साथ नहीं है तब भी वही मेरे चारो ओर है। पता नहीं कैसी हो, कोई कुछ बता भी नहीं रहा। मै अपना चहरा हथेलियों के बीच छिपा कर वहीं कुरसी पर बैठ गया । पल भर में पूरी दुनियां पलट गई थी। 
तभी दरवाजे पर खटका हुआ,  आवाज़ आई, खाना रखा है ले लो। मैंने दरवाजे के बाहर से खाना उठा लिया ।  उस दिन जब घर पहुंचा, तो एक बड़ी उम्र के, गठीले शरीर वाले सज्जन चाचाजी के साथ बैठे थे।   मैं अंदर गया, तो चाचाजी ने पास बुलाया ।
चाचाजी ने मेरा परिचय सरपंच जी से कराया।
चाचाजी: सुक्खी भाई, ये बल्ली प्राजी का बड़ा पुत्तर है, इंदरजीत । वड्डा होनहार है जी। बल्ली वीर जी यहाँ फैक्ट्री लगवा रहें है। मुंडा उसके खातिर गांव में जमीन देख रहा है।
सरपंचः ये तो बड़ा चंगा है जी। कोई ना पुत्तर, कल तैनू जमीन दिखा देंगे और दोपहर की रोटी भी खिला देंगा।
मैं: चंगा जी! सत श्री काल जी।
सरपंच जी चले गए। मैं खाना खाकर अपने कमरे में आ गया। जाने क्यूँ कम्मो का खयाल मन से जा ही नहीं रहा था।
अगले दिन चाचाजी ने नाश्ते के बाद सरपंच जी के घर जाने के लिए गाड़ी  निकालने को कहा।

मैं मुसकुराता हुआ चाचाजी के घर की ओर चल पड़ा । पूरे रास्ते, कम्मो का चहरा आँखो के आगे आता रहा। अब भी जब वो मेरे साथ नहीं है तब भी वही मेरे चारो ओर है। पता नहीं कैसी हो, कोई कुछ बता भी नहीं रहा। मै अपना चहरा हथेलियों के बीच छिपा कर वहीं कुरसी पर बैठ गया । पल भर में पूरी दुनियां पलट गई थी। तभी दरवाजे पर खटका हुआ, आवाज़ आई, खाना रखा है ले लो। मैंने दरवाजे के बाहर से खाना उठा लिया । उस दिन जब घर पहुंचा, तो एक बड़ी उम्र के, गठीले शरीर वाले सज्जन चाचाजी के साथ बैठे थे। मैं अंदर गया, तो चाचाजी ने पास बुलाया । चाचाजी ने मेरा परिचय सरपंच जी से कराया। चाचाजी: सुक्खी भाई, ये बल्ली प्राजी का बड़ा पुत्तर है, इंदरजीत । वड्डा होनहार है जी। बल्ली वीर जी यहाँ फैक्ट्री लगवा रहें है। मुंडा उसके खातिर गांव में जमीन देख रहा है। सरपंचः ये तो बड़ा चंगा है जी। कोई ना पुत्तर, कल तैनू जमीन दिखा देंगे और दोपहर की रोटी भी खिला देंगा। मैं: चंगा जी! सत श्री काल जी। सरपंच जी चले गए। मैं खाना खाकर अपने कमरे में आ गया। जाने क्यूँ कम्मो का खयाल मन से जा ही नहीं रहा था। अगले दिन चाचाजी ने नाश्ते के बाद सरपंच जी के घर जाने के लिए गाड़ी निकालने को कहा।