अमावस के अंधेरे में। Read in caption... My second Last poetry before leaving. अमावस के अंधेरे में। एक दीप जला अमावस के अंधेरे में। नीरवता निशा की भंग हुई। आंखें खुली बंद जगत की। काली चादर फिर से नवरंग हुई। छट गए दुखों के साए खुशियां कुछ संग हुई,