पहुँचने के तुम तलक वो छः सौ अस्सी रूपए के कई टिकट जो बरसों से जमा किए हैं जैसे पाण्डुलिपियां हैं प्रेम की सोख रखी हैं इन्होंने यादें कई और वो पल भी जो छलक जाया करते थे बस के सफर में तुमसे झगड़ कर लिए हेडफोन से तुम्हारा पंसदीदा गीत सुनते हुए ये सोचते हुए कि मिलूंगा तो क्या कहूँगा तुम्हें? या सीधा गले लगा लूँगा तुमको तुम्हारी इजाजत के बिना! कितना सुकूं होगा उस पल में जो गुजरेगा तुम्हारे गेसुओं के साए में कितना भारी होगा फिर यूँ मिलकर लौट जाना.. ये टिकट भी जैसे सफर हैं तुम्हारा और मेरा सुना है अब टिकट का दाम बढ़ गया है महँगा हो गया है तुमसे मिलना प्रेम में डूबे हम दोनों के भाव भी तो बढ़ गए हैं एक दूसरे के प्रति फर्क सिर्फ इतना है वो खरीदे नहीं जा सकते अनमोल हैं!! ©KaushalAlmora #टिकट #प्रेम #love #poetry #yqpoetry #life #पांडुलिपी #yqdidi