क्यूं दर्द देता है खुद को खामोश रहकर तू यूँही दिलों के धड़कनों से दूर भागता-फिरता है कहाँ मैं सुकून हूँ तेरा मान ले गले लगाकर देख तू मैं नाराज़ नहीं हूँ तुझसे न तू नाराज़ हो खुद से हम आईना हैं एक दूसरे के कोई फर्क नहीं तुझमें-मुझमें खामोशियां