गज़लें लिखूंगा न जाने कितनी दफा तुमपे, मगर खत्म कभी न तेरा एहसास होगा। रहूंगा तेरे शहर में 'मुंतजिर' बनकर, और तू मेरा मेहताब होगा।। -मुंतजिर ©DHANANJAY PANDEY #मुंतजिर Rohan davesar