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गज़लें लिखूंगा न जाने कितनी दफा तुमपे, मगर खत्म कभ

गज़लें लिखूंगा न जाने कितनी दफा तुमपे,
मगर खत्म कभी न तेरा एहसास होगा।
रहूंगा तेरे शहर में 'मुंतजिर' बनकर,
और तू मेरा मेहताब होगा।।

-मुंतजिर

©DHANANJAY PANDEY #मुंतजिर Sushant Rana AkashGoutam Shahkar Bhardwaj Prajapati TAUQEER KAZI Rohan davesar
गज़लें लिखूंगा न जाने कितनी दफा तुमपे,
मगर खत्म कभी न तेरा एहसास होगा।
रहूंगा तेरे शहर में 'मुंतजिर' बनकर,
और तू मेरा मेहताब होगा।।

-मुंतजिर

©DHANANJAY PANDEY #मुंतजिर Sushant Rana AkashGoutam Shahkar Bhardwaj Prajapati TAUQEER KAZI Rohan davesar