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विवाह सात फेरे और सिंदूर दान कहानी विवाह एक बहुत

विवाह
सात फेरे और सिंदूर दान 
कहानी

विवाह एक बहुत सुंदर सामाजिक बंधन है। भारतीय समाज के विवाह का एक अपना ही रौनक होता है। बचपन में हम यही समझते थे कि सब परिवार, रिश्तेदार, मोहल्ले वाले, जान पहचान वालों और बैंड बाजा बारात के उपस्थिति में विवाह होता है। लेकिन हमें उस समय ये नहीं मालूम था कि सात फेरे हम हो गए तेरे और सिंदूर लगा देना और दो लोगों का एक साथ रहना ही मुख्य विवाह कहलाता है। बाकी तो सामाजिक रीति रिवाज हैं। मेरी आज़ की कहानी कुछ इसी तथ्य पर आधारित है।
       
अनुशीर्षक में://👇👇    

          बात कुछ पुरानी नब्बे के दशक की है, जब टीवी पर हम इतवार को रंगोली और महाभारत देखने का इंतजार करते थे, मेरे मोहल्ले में बलिया जिला से शर्मा अंकल का परिवार किराए पर रहने के लिए आया। उनकी एक बेटी नविता थी जो अभी बारह पास करके  कॉलेज में बीए में प्रवेश के लिए एंट्रेंस एग्जाम दिया था और एक उनसे छोटा बेटा कुमार तो अभी कक्षा चार में पढ़ता था। शर्मा अंकल डिप्टी एसपी और थोड़े गुस्से वाले थे जबकि उनकी पत्नी यानी शर्माइन आंटी बहुत खुशमिजाज और मिलनसार थी। वो हमेशा अपने पास एक पनौती पान खाने के लिए रखती थीं। बात अब नविता की करनी है क्योंकि ये विवाह कहानी उन्हीं के सच्चे घटना पर है। नविता जो बहुत ही सुंदर, सुशील, मीठा और कम बोलने वाली थी। कुमार उनको दिद्दा बुलाता था। और मेरी दीदी, त्रिपाठी और राय आंटी की बेटियाँ और नविता सभी ने बीए फर्स्ट ईयर में प्रवेश लिया। अब सब लोग साथ में ही जाने लगे। उस वक्त मैं मुश्किल से आठ या नौ साल की रही हूँगी। अब धीरे धीरे चारों लोगों में अच्छी दोस्ती हो गई। मैं भी कुमार की तरह नविता दीदी को दिद्दा बुलाने लगी।
   धीरे धीरे उनके कॉलेज में पढ़ने वाले एक भैया आनंद शुक्ला जिनके पिता कानूनगो थे वो भी हमारे मोहल्ले से दो किलोमीटर की दूरी पर रहते थे। वो उस समय के बहुत ही सुंदर स्मार्ट हैंडसम और कॉलेज के टॉपर लड़के थे दीदी के सीनियर थे। सारी कॉलेज की लड़कियांँ उन पर फ़िदा रहती थी। ऐसा मैंने दीदी और दिद्दा के बातों से जान गई थी। लेकिन वो धीरे धीरे नविता दिद्दा को पसंद करने लगे थे। चुपके चुपके मैं नविता दिद्दा, दीदी और बाकी उनके सहेलियों की बातें सुन लेती थी, कुछ पल्ले पड़ती थी कुछ सर के ऊपर से निकल जाती थी। धीरे धीरे समय बिताया गया जहांँ तक उस वक्त मुझे समझ आया था मुझे ये पता लग गया था कि नविता दिद्दा और आनंद भईया का चक्कर चल रहा है। वक्त बीतता रहा बीए सेकंड ईयर का एग्जाम देने के बाद गर्मी की छुट्टी कॉलेज में हो गई। आनंद भईया बीएससी फाइनल का एग्जाम देकर हायर स्टडीज के लिए शहर से बाहर जाने के तैयारी में लग गए, बस रिजल्ट के आने का इंतज़ार कर रहे थे, जाने से पहले दिद्दा से मिलना चाह रहे थे तो मेरी दीदी और उनकी सहेलियाँ मिलकर कुछ चुपके से दो दिन  बाद मिलने का प्लान बनाया, जोकि मैंने सुन लिया था। मेरी भी गर्मी की छुट्टियांँ चल रही थीं, दूसरे दिन शाम को 4 बजे शहर से बाहर छोटा सा जंगल था वहीं ये सारे लोग मिलने की तैयारी में लग गए। जब दीदी जाने को तैयार हो रही थी तभी मांँ ने कहा कि छोटी को भी साथ ले जाओ अंधेरा होने से पहले तुम लोग लौट आना। दीदी मुझे साथ नहीं लेना चाहती थी लेकिन मांँ के फ़रमान के कारण उसे मुझे साथ ले जाना पड़ा। सब लोग इकठ्ठा होकर जंगल की तरफ़ जाने ले लिए ऑटोरिक्शा ले लिया। हम लोग निश्चित समय तक पहुँच गए। आनंद भईया अपने दो दोस्तों के साथ इन लोग का इंतज़ार कर रहे थे। पहुँचने के बाद सारे लोग एक गुलमोहर के पेड़ के नीचे बात करने लगे। उधर नविता दिद्दा आनंद भईया के साथ कुछ दूर जाकर बातें करने लगीं। उन लोग में उस क्या बात हुई कुछ नहीं पता चला। उसके बाद हर दो चार दिन पर ये सारे लोग मिलने लगे मैं भी कभी कभी दीदी के साथ चली जाती थी। मुझे जहांँ तक याद है कुछ वादों की बातें उन लोगों के बीच मुझे सुनाई दी थी।
          एक दिन आनंद भईया के पड़ोसी ने इन लोगों को मिलते हुए देख लिया। अब क्या उस ज़माने में मुँह खुलते ही बात हवा की तरह फैलती थी। फिर क्या था, दोनों मोहल्लों में सिर्फ़ इन दोनों लोगों की चर्चा शुरू हो गईं। किसी के कानों से शर्मा अंकल तक बात पहुँच गई। उन्होंने नविता दिद्दा को उस वक्त कुछ नहीं कहा लेकिन आनंद भईया से मिलकर  उनसे गुस्से में अपनी बेटी से दूर रहने को कहा, उनको धमकी देते हुए कहा वरना अंजाम बहुत बुरा होगा। जून के पहले सप्ताह में कॉलेज से इन सबका रिजल्ट आ गया। सब लोग पास हो गए थे और आनंद भईया बीएससी तो क्या पूरा कॉलेज फिर से टॉप किया था।
      अब उनको शहर से बाहर जाना था अपना कैरियर बनाना था। उससे पहले वो नविता दिद्दा से मिलना चाहते थे। फिर ये सारे लोग गलती करते हुए प्लान बना कर मिलने चले गए, मैं भी अपनी दीदी के साथ गई। पता नहीं उस मनहूस घड़ी में आनंद भईया और उनके दोस्तों के मन में क्या आया भईया आनन फानन में लकड़ी इकट्ठा कर दिद्दा का हाथ पकड़ फेरा लेने लगे और सात फेरे पूरा होते ही साथ लाया हुआ सिंदूर लगा दिया। सब कुछ इतना अचानक हुआ कि सब हक्के बक्के रह गए किसी के मुँह से कुछ देर के लिए कुछ नहीं निकला। तब दिद्दा ने कहा कि आनंद आपने ये क्या किया, आनंद भईया बोले कि तुम्हारे पापा तुम्हारा विवाह मुझसे ऐसे होने ना देते उन्होंने मुझे धमकी दी है तो मैंने दूसरा रास्ता चुना और रह गई कैरियर की बात वो तो मुझे ख़ुद पर इतना तो भरोसा है कि कुछ तो बन ही जाऊंँगा। हांँ, ये बात और है कि तुम्हें कुछ वक्त के लिए सबसे छुपा कर हमारी विवाह रखना होगा जब तक मैं अपने पैरों पर नहीं खड़ा हो जाता, और मेरा लौटने तक इंतज़ार करना। सब इधर उधर घबराहट में टहल रहे थे, तभी आनंद भईया को मैंने दिद्दा को होठों को चूमते हुए देख लिया। मुझे उन लोग को देख हँसी आ गई, सब डर की वजह से जल्दीबाजी में अपने अपने घर की ओर चल पड़े।
        दो चार दिन बाद मेरे दिमाग़ में पता नहीं क्या आया कि मांँ से पूछ बैठी कि आप बोलती हो कि बहुत सारे लोग, पंडितजी और बैंड बाजा बारात के साथ विवाह होता है, और यहांँ तो अकेले ही  कुछ दोस्तों के उपस्तिथि में कुछ लोग विवाह कर लेते हैं, ऐसा सच में होता है क्या मांँ, ये सुन मेरी मांँ आवाक रह गईं, बोली कि किसकी ऐसा विवाह देख लिया तो मैंने झट से कुछ बोलने जा रही थी कि दीदी ने टोक मुझे रोक दिया और मांँ से बोली कि टीवी में एक फिल्म आ रही थी उसी को देख कर कुछ रही है, किनारे ले जाकर दीदी ने मुझे उस दिन बहुत डांँटा और कहा खबरदार किसी से कुछ कहा।
       लेकिन चोरी एक दिन पकड़ी ही जाती है, उस दिन जंगल में राजभर टोली से गीता बाई जो जंगल से लकड़ियांँ बिनने के लिए गई थी उसने इन लोगों को देख लिया था। पता नहीं ये बात मोहल्ले में कुछ दिन बाद क्यूँ बताई आज़ तक ये राज़ है। फिर क्या था चारों तरफ़ हंगामा, शर्मा अंकल ने दिद्दा का पढ़ाई छुड़ा दिया, हमारे पापा, त्रिपाठी और राय अंकल सभी ने अपनी बेटियों का जल्दबाजी में विवाह कर दिया। मांँ और पापा ने घर में दीदी को बहुत डांँटा था और धमकी दी कि आइंदा से ऐसा कुछ शिकायत दुबारा नहीं मिलनी चाहिए। बाद में शर्मा अंकल ने आनंद भईया जो इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) पढ़ने और विभिन्न तरह के परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, उनसे मिलने गए थे, उन लोगों के बीच क्या बहस हुआ, अंकल ने उनके साथ क्या किया कुछ नहीं पता चला, हांँ ये तो था कि कुछ तो ज़रूर हुआ था। शुक्ला अंकल अपने बेटे को कुछ दिन के लिए घर वापस लेकर आए उन्हें लगा वे अपनों के साथ रह कर ठीक हो जाएंगे। उसके बाद आनंद भईया धीरे धीरे मेंटली डिस्टर्ब होकर एक दिन पूरी तरह से पागल होकर शहर में घूमने लगे और तो और जब मैं बारह का बोर्ड का एग्जाम दे रही थी तो आनंद भईया घूम घूम कर भीख मांँगने लगे थे किसी को नहीं पहचानते थे, पता नहीं क्यूँ वो अपने
विवाह
सात फेरे और सिंदूर दान 
कहानी

विवाह एक बहुत सुंदर सामाजिक बंधन है। भारतीय समाज के विवाह का एक अपना ही रौनक होता है। बचपन में हम यही समझते थे कि सब परिवार, रिश्तेदार, मोहल्ले वाले, जान पहचान वालों और बैंड बाजा बारात के उपस्थिति में विवाह होता है। लेकिन हमें उस समय ये नहीं मालूम था कि सात फेरे हम हो गए तेरे और सिंदूर लगा देना और दो लोगों का एक साथ रहना ही मुख्य विवाह कहलाता है। बाकी तो सामाजिक रीति रिवाज हैं। मेरी आज़ की कहानी कुछ इसी तथ्य पर आधारित है।
       
अनुशीर्षक में://👇👇    

          बात कुछ पुरानी नब्बे के दशक की है, जब टीवी पर हम इतवार को रंगोली और महाभारत देखने का इंतजार करते थे, मेरे मोहल्ले में बलिया जिला से शर्मा अंकल का परिवार किराए पर रहने के लिए आया। उनकी एक बेटी नविता थी जो अभी बारह पास करके  कॉलेज में बीए में प्रवेश के लिए एंट्रेंस एग्जाम दिया था और एक उनसे छोटा बेटा कुमार तो अभी कक्षा चार में पढ़ता था। शर्मा अंकल डिप्टी एसपी और थोड़े गुस्से वाले थे जबकि उनकी पत्नी यानी शर्माइन आंटी बहुत खुशमिजाज और मिलनसार थी। वो हमेशा अपने पास एक पनौती पान खाने के लिए रखती थीं। बात अब नविता की करनी है क्योंकि ये विवाह कहानी उन्हीं के सच्चे घटना पर है। नविता जो बहुत ही सुंदर, सुशील, मीठा और कम बोलने वाली थी। कुमार उनको दिद्दा बुलाता था। और मेरी दीदी, त्रिपाठी और राय आंटी की बेटियाँ और नविता सभी ने बीए फर्स्ट ईयर में प्रवेश लिया। अब सब लोग साथ में ही जाने लगे। उस वक्त मैं मुश्किल से आठ या नौ साल की रही हूँगी। अब धीरे धीरे चारों लोगों में अच्छी दोस्ती हो गई। मैं भी कुमार की तरह नविता दीदी को दिद्दा बुलाने लगी।
   धीरे धीरे उनके कॉलेज में पढ़ने वाले एक भैया आनंद शुक्ला जिनके पिता कानूनगो थे वो भी हमारे मोहल्ले से दो किलोमीटर की दूरी पर रहते थे। वो उस समय के बहुत ही सुंदर स्मार्ट हैंडसम और कॉलेज के टॉपर लड़के थे दीदी के सीनियर थे। सारी कॉलेज की लड़कियांँ उन पर फ़िदा रहती थी। ऐसा मैंने दीदी और दिद्दा के बातों से जान गई थी। लेकिन वो धीरे धीरे नविता दिद्दा को पसंद करने लगे थे। चुपके चुपके मैं नविता दिद्दा, दीदी और बाकी उनके सहेलियों की बातें सुन लेती थी, कुछ पल्ले पड़ती थी कुछ सर के ऊपर से निकल जाती थी। धीरे धीरे समय बिताया गया जहांँ तक उस वक्त मुझे समझ आया था मुझे ये पता लग गया था कि नविता दिद्दा और आनंद भईया का चक्कर चल रहा है। वक्त बीतता रहा बीए सेकंड ईयर का एग्जाम देने के बाद गर्मी की छुट्टी कॉलेज में हो गई। आनंद भईया बीएससी फाइनल का एग्जाम देकर हायर स्टडीज के लिए शहर से बाहर जाने के तैयारी में लग गए, बस रिजल्ट के आने का इंतज़ार कर रहे थे, जाने से पहले दिद्दा से मिलना चाह रहे थे तो मेरी दीदी और उनकी सहेलियाँ मिलकर कुछ चुपके से दो दिन  बाद मिलने का प्लान बनाया, जोकि मैंने सुन लिया था। मेरी भी गर्मी की छुट्टियांँ चल रही थीं, दूसरे दिन शाम को 4 बजे शहर से बाहर छोटा सा जंगल था वहीं ये सारे लोग मिलने की तैयारी में लग गए। जब दीदी जाने को तैयार हो रही थी तभी मांँ ने कहा कि छोटी को भी साथ ले जाओ अंधेरा होने से पहले तुम लोग लौट आना। दीदी मुझे साथ नहीं लेना चाहती थी लेकिन मांँ के फ़रमान के कारण उसे मुझे साथ ले जाना पड़ा। सब लोग इकठ्ठा होकर जंगल की तरफ़ जाने ले लिए ऑटोरिक्शा ले लिया। हम लोग निश्चित समय तक पहुँच गए। आनंद भईया अपने दो दोस्तों के साथ इन लोग का इंतज़ार कर रहे थे। पहुँचने के बाद सारे लोग एक गुलमोहर के पेड़ के नीचे बात करने लगे। उधर नविता दिद्दा आनंद भईया के साथ कुछ दूर जाकर बातें करने लगीं। उन लोग में उस क्या बात हुई कुछ नहीं पता चला। उसके बाद हर दो चार दिन पर ये सारे लोग मिलने लगे मैं भी कभी कभी दीदी के साथ चली जाती थी। मुझे जहांँ तक याद है कुछ वादों की बातें उन लोगों के बीच मुझे सुनाई दी थी।
          एक दिन आनंद भईया के पड़ोसी ने इन लोगों को मिलते हुए देख लिया। अब क्या उस ज़माने में मुँह खुलते ही बात हवा की तरह फैलती थी। फिर क्या था, दोनों मोहल्लों में सिर्फ़ इन दोनों लोगों की चर्चा शुरू हो गईं। किसी के कानों से शर्मा अंकल तक बात पहुँच गई। उन्होंने नविता दिद्दा को उस वक्त कुछ नहीं कहा लेकिन आनंद भईया से मिलकर  उनसे गुस्से में अपनी बेटी से दूर रहने को कहा, उनको धमकी देते हुए कहा वरना अंजाम बहुत बुरा होगा। जून के पहले सप्ताह में कॉलेज से इन सबका रिजल्ट आ गया। सब लोग पास हो गए थे और आनंद भईया बीएससी तो क्या पूरा कॉलेज फिर से टॉप किया था।
      अब उनको शहर से बाहर जाना था अपना कैरियर बनाना था। उससे पहले वो नविता दिद्दा से मिलना चाहते थे। फिर ये सारे लोग गलती करते हुए प्लान बना कर मिलने चले गए, मैं भी अपनी दीदी के साथ गई। पता नहीं उस मनहूस घड़ी में आनंद भईया और उनके दोस्तों के मन में क्या आया भईया आनन फानन में लकड़ी इकट्ठा कर दिद्दा का हाथ पकड़ फेरा लेने लगे और सात फेरे पूरा होते ही साथ लाया हुआ सिंदूर लगा दिया। सब कुछ इतना अचानक हुआ कि सब हक्के बक्के रह गए किसी के मुँह से कुछ देर के लिए कुछ नहीं निकला। तब दिद्दा ने कहा कि आनंद आपने ये क्या किया, आनंद भईया बोले कि तुम्हारे पापा तुम्हारा विवाह मुझसे ऐसे होने ना देते उन्होंने मुझे धमकी दी है तो मैंने दूसरा रास्ता चुना और रह गई कैरियर की बात वो तो मुझे ख़ुद पर इतना तो भरोसा है कि कुछ तो बन ही जाऊंँगा। हांँ, ये बात और है कि तुम्हें कुछ वक्त के लिए सबसे छुपा कर हमारी विवाह रखना होगा जब तक मैं अपने पैरों पर नहीं खड़ा हो जाता, और मेरा लौटने तक इंतज़ार करना। सब इधर उधर घबराहट में टहल रहे थे, तभी आनंद भईया को मैंने दिद्दा को होठों को चूमते हुए देख लिया। मुझे उन लोग को देख हँसी आ गई, सब डर की वजह से जल्दीबाजी में अपने अपने घर की ओर चल पड़े।
        दो चार दिन बाद मेरे दिमाग़ में पता नहीं क्या आया कि मांँ से पूछ बैठी कि आप बोलती हो कि बहुत सारे लोग, पंडितजी और बैंड बाजा बारात के साथ विवाह होता है, और यहांँ तो अकेले ही  कुछ दोस्तों के उपस्तिथि में कुछ लोग विवाह कर लेते हैं, ऐसा सच में होता है क्या मांँ, ये सुन मेरी मांँ आवाक रह गईं, बोली कि किसकी ऐसा विवाह देख लिया तो मैंने झट से कुछ बोलने जा रही थी कि दीदी ने टोक मुझे रोक दिया और मांँ से बोली कि टीवी में एक फिल्म आ रही थी उसी को देख कर कुछ रही है, किनारे ले जाकर दीदी ने मुझे उस दिन बहुत डांँटा और कहा खबरदार किसी से कुछ कहा।
       लेकिन चोरी एक दिन पकड़ी ही जाती है, उस दिन जंगल में राजभर टोली से गीता बाई जो जंगल से लकड़ियांँ बिनने के लिए गई थी उसने इन लोगों को देख लिया था। पता नहीं ये बात मोहल्ले में कुछ दिन बाद क्यूँ बताई आज़ तक ये राज़ है। फिर क्या था चारों तरफ़ हंगामा, शर्मा अंकल ने दिद्दा का पढ़ाई छुड़ा दिया, हमारे पापा, त्रिपाठी और राय अंकल सभी ने अपनी बेटियों का जल्दबाजी में विवाह कर दिया। मांँ और पापा ने घर में दीदी को बहुत डांँटा था और धमकी दी कि आइंदा से ऐसा कुछ शिकायत दुबारा नहीं मिलनी चाहिए। बाद में शर्मा अंकल ने आनंद भईया जो इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) पढ़ने और विभिन्न तरह के परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, उनसे मिलने गए थे, उन लोगों के बीच क्या बहस हुआ, अंकल ने उनके साथ क्या किया कुछ नहीं पता चला, हांँ ये तो था कि कुछ तो ज़रूर हुआ था। शुक्ला अंकल अपने बेटे को कुछ दिन के लिए घर वापस लेकर आए उन्हें लगा वे अपनों के साथ रह कर ठीक हो जाएंगे। उसके बाद आनंद भईया धीरे धीरे मेंटली डिस्टर्ब होकर एक दिन पूरी तरह से पागल होकर शहर में घूमने लगे और तो और जब मैं बारह का बोर्ड का एग्जाम दे रही थी तो आनंद भईया घूम घूम कर भीख मांँगने लगे थे किसी को नहीं पहचानते थे, पता नहीं क्यूँ वो अपने