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मुद्दतें गुज़र गईं हिसाब हमने किया नहीं उसने कुछ



मुद्दतें गुज़र गईं
हिसाब हमने किया नहीं
उसने कुछ सुना नहीं
हमने कुछ कहा नहीं

तारीख भी बदल गई
महीना भी बदल गया
तुम आकर मुझे सम्हाल लो
मैं टूटता पलाश हूं

उसे ढूंढ़ते हम रहे
वो कहीं मिला नहीं
अब अपने दिल ढूंढ़ लो
शायद तुम्हारे ही आस-पास हूं...
© abhishek trehan 🎀 Challenge-362 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 4 पंक्तियों अथवा 25 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।


मुद्दतें गुज़र गईं
हिसाब हमने किया नहीं
उसने कुछ सुना नहीं
हमने कुछ कहा नहीं

तारीख भी बदल गई
महीना भी बदल गया
तुम आकर मुझे सम्हाल लो
मैं टूटता पलाश हूं

उसे ढूंढ़ते हम रहे
वो कहीं मिला नहीं
अब अपने दिल ढूंढ़ लो
शायद तुम्हारे ही आस-पास हूं...
© abhishek trehan 🎀 Challenge-362 #collabwithकोराकाग़ज़

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