यद्यपि यह कविता कठिन काम कराती है तभी तो देर रात तक मुझे जगाती है किंतु कविता भी भोली है, जो प्रतिभा की गोली है, जो सबकी सुनते-सुनते सोती नहीं, मन से मर जाती है परंतु रोती नहीं। क्योंकि कर्ण हार नहीं रहा, हिरण्यकश्यप हार नहीं रहा, क्योंकि केशव जीत नहीं रहा दुर्योधन द्रौपदी को नोच रहा है, फिर भी केशव केवल सोच रहा है कि क्या करना है, कि क्या करना है किंतु कुछ कर नहीं रहा बेशक वह डर नहीं रहा यही सब सोचकर न निद्रा को निमंत्रण दे पा रहा हूँ, न सुबह का स्वागत कर पा रहा हूँ। फिर भी जबरन मैं सोने जा रहा हूँ।। ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #केशव_केवल_सोच_रहा_है