कभी मायूसी मे बैठकर खयालो की आगौश मे सिमटना कभी आती हुई यादो पर मुसकुराते मुसकुराते आंखो का नम होना। कभी खिड़की पर बैठकर आती हुई बारिश की ठंण्डी फुहार पर रूखसारों को भीगोना। कभी मचलती हवॉऔं मे बांहैं फैलाकर अपने बज़ुऔं मे हवॉऔं को खेद करना। कभी तारीकी से महब्बत इतनी की जलते हुऐ शम्मा बुझाकर किसी अनजान एहसास की मौजुदगी का एहसास करना। कभी रात की खामोशी मे अपने ही एहसासात से बाते करना , कभी छुपकर दिनभर के सवालात पर खुद ही से सवाल करना। कभी ज़ंदगी के हर मसलेह को अपने ही तरीके से लफज़ौं मे सझाकर किताबौं छुपा देना और कभी चोरी से उन्हैं पढ़कर खुद ही मैं सौ खामीयां गिना दैना। कभी किसी के तनज़ पर मुसकुराकर खुदसे मुकर जाना और कभी तनहाईयौं मे उनहीं तलखियौं पर आंसूंऔ मे बेह जाना। कभी खुदसे नाराज़ इतना ,कभी खुदसे ही से दिल लगा लेना , कभी इन्तेज़ार खुशियौं के ज़ंदगी को जी लेना । कभी वख्त पर भारोसा किए ज़न्दगी को नई रौशनी देना ,कभी फिर एक कल के लिए नई सुबहा का इन्तेज़ार करना। Anjaan Ehsas