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पाई-पाई जोड़कर वो तुम्हारे घर को बनाती है हाथ उठाते

पाई-पाई जोड़कर
वो तुम्हारे घर को बनाती है
हाथ उठाते उसपर
तुमको शर्म नहीं आती है,भूख उसे भी है
पर खाना उसने खाया नहीं
पता लगाओ देखो शायद
पति दफ्तर से आया नहीं ,हर दिन की देरी
उसके लिए समस्या भारी है
इसी समर्पण सहित
तपस्या उसकी जारी है भाग्य मनाओ फिर भी
तुमको छोड़ वो नहीं जाती है
हाथ उठाते जिसपर
तुमको शर्म नहीं आती हऐ

©mau jha नारी कविता
पाई-पाई जोड़कर
वो तुम्हारे घर को बनाती है
हाथ उठाते उसपर
तुमको शर्म नहीं आती है,भूख उसे भी है
पर खाना उसने खाया नहीं
पता लगाओ देखो शायद
पति दफ्तर से आया नहीं ,हर दिन की देरी
उसके लिए समस्या भारी है
इसी समर्पण सहित
तपस्या उसकी जारी है भाग्य मनाओ फिर भी
तुमको छोड़ वो नहीं जाती है
हाथ उठाते जिसपर
तुमको शर्म नहीं आती हऐ

©mau jha नारी कविता
maujha1290859167510

mau jha

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