क़यामत के कुछ ऐसे भी दिन आये धीरे धीरे सब अपने बेगाने हो गए स्वार्थ भरी जिंदगी मे कोई अपने ना रहे क़यामत कुछ बढ़ गई इस क़दर हमराही भी अब अपने राह पर हो गए बस एक ही मन्नत है उससे ऐसा करिश्मा करना ए खुदा, बेगाने भी रिश्ता बनाने का बहाना ढूंढे राजोतिया भुवनेश ©Rajotiya Bhuwnesh jangir क़यामत के दिन