रोज बनाती हूं रोज मिटाती हूं सागर की लहरों में कश्ती चलाती हूं इश्क़ ना होता सच्चा तो मूड कर नहीं देखती कि रोज टूटती हूं फिर भी सजदे में तेरे अपना सर झुकाते हू झुती होती तो हार मान जाती सच्ची हूं इसलिए जुबान लड़ाती हूं मर चुकी अंदर ही अंदर फिर भी वो चिड़िया हूं जो पंख फड़फड़ाती हूं #नींद नहीं आ रही 😔😔😔 और कुछ लोगों को बता दू मुझे रात में बात करने के लिए कोई इंसान नहीं चाहिए उनकी यादे काफी है 🙏🙏🙏