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इक आदत सी हो गई मुझे अँधेरे की ना जाने क्यूँ अब उ

इक आदत सी हो गई मुझे अँधेरे की 
ना जाने क्यूँ अब उजाले से डर लगता हैं
उदासी से मोहब्बत इस कदर हुई हैं कि 
मुस्कराहट से हर रिश्ता अनजान लगता हैं
कैद हैं हम खुद ही अकेलेपन की जंजीरों में
लेकिन आसमां का आज़ाद पंछी तो हमें भी अच्छा लगता हैं

©writer....Nishu...
  #अकेलेपन की जंजीर और आज़ाद पंछी की चाह

#अकेलेपन की जंजीर और आज़ाद पंछी की चाह

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