स्थिर खड़ा हिमालय कुछ बात सोचता है स्थिर खड़ा हिमालयया किसी की बाट जोहता है कह रहा कुछ, खड़ा होकर देख रहा है कुछ, आसान नही है राह मिल जाने की किसी से कठोर हो चुका बहुत याद मे जिसकी, वो दूर गगन मे नज़र आते, पाना चाहे ये उनको पर सुबह होते ही वो ढ़ल जाते, आसान नही है राह मिलन की फिर भी आशिक है की अढ़तें जाते, है इसका भी अडिग स्वाभाव, पर फिर भी जब थक जाता है, पिघल पड़ता है ओर नदी बन बह जाता है, सागर मे मिलता बादल बनता ओर खुद से ही टकराता है, खुद से ही टकराता है